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Nakuul Mehta recites hard hitting poetry about the bitter reality of the world

He has been collaborating with a writer, Ajay Singh and recites some of his hard-hitting poetry through his Instagram account.

Popular actor Nakuul Mehta has been using his social media handle to talk about some harsh reality of the society we live in. He has been collaborating with a writer, Ajay Singh and recites some of his hard-hitting poetry through his Instagram account.

One of his recitations also paid tribute to the tragic demise of Sushant Singh Rajput while explaining how people have been using an innocent man’s death for their own personal agendas.

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कलाकार मर गया लेकिन मांस अब भी बाकी है तुम गिद्धों के लिए उसके शरीर से बहुत पहले मरी थी तुम्हारी आत्मा सोचो मत, चीर दो, फाड़ दो नोच लो अपनी चोंच से फोड़ दो उसकी आँखें छेद दो उसका दिल, गुर्दा फिर खुद बिठाओ अदालतें पता करो कैसे हुआ ये मुर्दा कैसी अजीब विडम्बना है लाशों को नोचने वाले पेशेवर आज खुद पूछ रहे हैं इसे जीते जी किस गिद्ध ने नोचा किसने खुरचा इसके सपनों को किसने रोकी इसकी उड़ान कौन है जो घुस गया नसों में खा गया इसका दिल, दिमाग, जान शायद ठीक ही है की कलाकार अब नहीं है गिद्धों की इस नोचमनोच और चोचमचोंच से बहुत दूर स्पेसटाइम में उड़ता गिद्धों की कलाकारी और कलाकारों की गिद्धता देखता शायद ये भी कहता शरीर तो नोच लिया गिद्धों अब क्या आत्मा भी खाओगे कलाकार अभी और भी हैं उसीकी तरह सहमे, डरे अपने वजूद की तलाश में डूबते देर मत करो भेड़ियों दौड़ो, पकड़ो उन्हें भी गड़ा दो दांत अपने आखिर उनकी हड्डियों पर भी मांस के लोथड़े काफ़ी हैं।

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The actor has amazing oratory skills and they make the poem appear more intense and hard-hitting as he knows just the right way to capture the essence of it through his voice and screen presence.

Since his first poetry, the actor has posted two other poetries which will definitely compel you to take a step back and think about what humanity stands for and what is being considered moral these days.

See them here:

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ये जो चेहरों पे पट्टे बांधकर तुम घूमा करती हो ये किसी दिन उतर जाएंगे, गांधारी तुम्हारी आँखों पर पड़ी पट्टियों का क्या धृतराष्ट्र तो फिर भी अँधा है अपने मुकुट की चमक का उसे द्रौपदी का वस्त्रहरण क्यूँ दिखाई दे कौरव सभा के इस शोर में भीष्म और विदुर भी कन्वीनीएंटली साइलेंट हैं “सरकारी पेंशन है भाई, बंद न हो जाए” कृपाचार्य, द्रोण, कर्ण सब अपने अपने ट्विटर हैंडल पर खामोश पांडवों की तो खैर औकात ही क्या अब बोलता है तो सिर्फ़ संजय हर दिन एक नयी महाभारत गढ़ता एक नया चक्रव्यूह रचता अभिमन्यु की मौत उत्तरा पर मढ़ता ! जो द्रौपदी की लाज बचाने कोई कृष्ण आये तो उससे पूछता “इतनी साड़ियां तुम्हारे पास आयीं कहाँ से?” हस्तिनापुर वांट्स टु क्नो हैश टैग #EDGrillsKrishna दो टूक कहूँगा तुमसे, गांधारी तुम्हारा अपराध ये नहीं कि तुमने कौरवों को जना है फॉर दैट मटर, ये पांडव क्या कौरवों से कम हैं! मग़र अंधों के साथ अंधा हो जाना ये त्याग नहीं बेवकूफ़ी है! जो तुमने ये पट्टियाँ न बाँधी होतीं तो देख पातीं धृतराष्ट्र की बगल में बैठे इस गबल को जो कहता है कि धृतराष्ट्र ही राष्ट्र है ये युद्ध करवाकर लील जाएगा तुम्हारे सौ पुत्रों को और फिर सूट पे दस रूपये का झंडा खोस के कहेगा सी यू आफ्टर दिस शॉर्ट ब्रेक!

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गिद्ध और गांधारी के बाद प्रस्तुत है हमारी तीसरी कविता “नीले पट्टे” blue tag “नीले पट्टे” (Blue Tag) यूँ घूरो मत मुझे अदब से पेश आओ अब मैं सड़क का कुत्ता न रहा आज मुझे नीले पट्टे पड़ गए अभी सुबह सुबह ही नीली चिड़िया चहचहाई बोली मुबारक हो भाई गुमनामी के दिन अब लद गए आज तुझे भी नीले पट्टे पड़ गए अब भौंक जितना भौंकना है तेरी हर भौंक में अब वज़न है बेनाम कुत्तों की इस भीड़ में आज से तू अल्सेशियन है ये पट्टा तूने यूँ ही नहीं कमाया है बिन जाली के सर्कस में कूदा है दिन रात मसखरा बनकर, हड्डियाँ तुड़वाकर तब जाकर मिला है ये कुत्तों का ऑस्कर अब जा जाकर पिल्लों की एक टोली बना जितने ज़्यादा पिछलग्गू पिल्ले उतना चमकीला तेरे पट्टों का कलर मियाँ, अब तू सिर्फ़ कुत्ता नहीं रहा अाज से तू है इन्फ्लुएंसर! अब जाकर बेच जूते मोज़े कंघी साबुन बटोर थोड़ी हड्डियाँ, घिस इलेक्ट्रिक दातून लेकिन हाँ, पिल्लों से सावधान ये दोमुहे हैं जब तक इनकी बात करो दुम हिलाते हैं थोड़ा अपने मन की कहो, काट खाते हैं “हम इन्हे चाहते थे, अब नहीं!” “व्हाट अ डिसअप्पॉइंटमेन्ट!” “अरे ये तो साला सस्ते पट्टे वाला है!” सच कहा था चिड़िया ने बात मुझमे नहीं इन पट्टों में है जो उनकी धुन पे नाचूँ तो भांड नहीं तो लिब्रांड कुत्तों सी भाषा, कुत्तों से विचार सच बता पिल्ले तुझे मेरी तरह ही कुत्ता बनना है न, यार ! प्रॉब्लम तेरी मेरी नहीं, इन पट्टों की है हम सब बस अंधाधुंध दौड़ रहे हैं इनके पीछे दिन रात यही गिनते – कौन ऊपर, कौन नीचे नापते इन पट्टों की लम्बाई, चौड़ाई “तू जानता नहीं मेरे बाप के गले में कितना बड़ा पट्टा है, भाई!“ ये पट्टे किसी दिन दम घोंट जाएंगे तेरा भी और मेरा भी मत पड़ इनके पीछे, ये ज़ंजीर हैं इनसे घुटकर जब हमारी लाश पड़ी होगी तो कई पट्टाधारी आएंगे इसे किस पट्टेवाले ने मारा ये जांच बिठायेंगे गली में फ़िर उठेगा शोर रुदालियाँ गायेंगी गालियाँ बेचारा कुत्ता मर गया अब इसे गोल्डन पट्टा पहना ही दो और चलो, सारे ज़ोर से बजाओ तालियां ! पिल्ले, मैं जानता हूँ अब तू टू प्लस टू फाइव कर रहा है सोच रहा है ये साला किसकी बात कर रहा है लेकिन तुझे बता दूँ मैं बड़ा रोमांटिक कुत्ता हूँ चिड़िया ने जब हम सबको जोड़ा था मुझे लगा अब हम सब साथ मिलकर भौकेंगे तेरी भौंक, मेरी भौंक एक नयी सिम्फ़नी बनायेंगे नयी भाषा, नए विचार लाएंगे लेकिन अफ़सोस, हमने अपनी टांग उठाई और चिड़िया के पूरे प्लान पे विसर्जन कर दिया, मेरे भाई! * * Continued in comments

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There is no doubt that Nakuul has a way of being compassionate with his words and uses it for the greater good. His effort of holding a mirror out for the society to look at is commendable.

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